Friday, July 24, 2009

स्वप्न सजाते हुये


न गिला करना की जख्मी है कलम अपनी

ये कहकहों को समझने वाले है

क्या समझे ये दर्द तेरा ----------------------

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एक पक्षी को देखा था

कल नीड़ बनाते हुए ---तिनका तिनका एहतियात से सजाते हुए

हर पल आँखों में स्वपन सजाते हुए

फ़िर देखा उसी नीड़ को आँधियों में बिखर जाते हुए

मैं कल भी वहीं खड़ा था --------आज भी वही ठिकाना है

पर आज मेरी नजर ने देखा

उस पक्षी का एक नया ठिकाना है -------

कितना आसान था उसको रोज नए तिनके चुनना

हर तिनके पर अपना मुकद्दर लिखना ---------

हम क्यों बेबस है क्यों पर नही अपने -----

क्या हमारे सपने उन पक्षियों से कमतर है -

या होसलों में दम नही

हम भी काश पक्षी होते

रोज नए सफर पे नई किरन में खोते

रोज लिखते इबारत नए फ़साने की

फ़िर सोचता हूँ उसी नीड़ के नीचे खड़ा

क्या होगा जो कल फ़िर आंधी आयेगी

या बेरहम शिकारी का ये शिकार हो जायेगी

कितना कुछ है पर नही कुछ कही -------

सब बिरान है सबकी अपनी बगियाँ है -------


Sunday, July 12, 2009

सांवली हसीना

सांवली हसीना याद आती है कभी
दिल के तारो को छेड़ जाती है कभी
कभी खिलखिलाती तो कभी उदास बहुत
जानी सी अनजान नजर आती है कभी
रिमझिम फुहारों में मचलती जवानी लेकर
ख़ुद जलती हुई आग लगाती है कभी
उंगलियों में दुपट्टा फिराती हुई
दिल में उतरती जाती है कभी
तिश्ना नजरो से देखकर यु ही
खुली आँखों से स्वप्न दिखती है कभी
चलती राहों में यु ही नजरें टिकाये
मेरे हमराह चली आती है कभी
पास आकर खामोश विदा होती है
दूर जाकर आवाज लगाती है कभी
कांपते हांथो से छूकर मुझको
मुझको मुझसे ही चुराती है कभी
शाम सा सुरमई बदन लेकर
सारे माहौल को महकती है कभी

तेरी याद के साथ


कुछ मौसमी मस्ती का हल्का हल्का सुरूर लिए कुछ हलकी रचना आपकी नजर -----------------------

ंगडाईया टूटी है तेरी याद के साथ

कैसी बैचैनिया आई तेरी याद के साथ

बरस रहा था बादल मद्धम मद्धम

चिंगारिया थी जिस्म में तेरी याद के साथ

muddhat से तो नाता रखा न आंसुओ से

कुछ बुँदे थी पलकों पे तेरी याद के साथ

रोशनी का अरमां तो खो दिया मगर

पिघल रही थी कोई शमां तेरी याद के साथ

उड़ा रही थी हवा ही उलझी जुल्फों को

दहक रहा था शबाब तेरी याद के साथ

नींद तो तेरे पहलू में छोड़ आए थे

महक रहा था आफ़ताब तेरी याद के साथ