कुछ दर्द ऐसे भी जो लफ्ज़ भी नही पाते ,
और कर्ज जो ताउम्र चुका भी नही पाते,
खाक कितनी भी वक्त की डाल दो इनपर
,बीते लम्हे कभी दफन नही हो पाते,
किसी दरख़्त की छांव ही नसीब है इनका,
आवारा मुसाफिर तो मकां भी नही पाते ,
रिसते रिसते खुद ब खुद सूख जाते है,
दिलो के नासूर कभी मरहम भी नही पाते,
हवाओ का इंतजार बिखरने के लिए,
मुरझाये फूल जब महक भी नही पाते
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