Friday, November 27, 2009

पिघलती रही जिन्दगी

आवारगी के साथ भटकती रही जिन्दगी
रात तन्हाई में सिसकती रही जिन्दगी
किसी पथरीली राह में मोहब्बत बनकर
नरम शोलों सी पिघलती रही जिन्दगी
बोझिल कदमो से बेइरादा मंजिलों पर
कभी चली तो कभी रुकी सी रही जिन्दगी
किसी ने आवाज दी जरा जो प्यार से
उस ओर दीवानावार चलती रही जिन्दगी
दोस्तों की रहनुमाई हर मौज के साथ साथ
बस ख्वावों से ही बहलती रही जिन्दगी
उधार की चंद कालिया चुनकर भी देखो
बीच आंसुओ के भी महकती रही जिन्दगी

तमाम शब


कतरा कतरा पिघलती रही तमाम शब्

वो आईने में संवरती रही तमाम शब्

निगाहें चमकती रही गहरे काजल में

चांदनी पहलु में मचलती रही तमाम शब्

सांसो को बयां करने थे कई अफ़साने

थम थम के तेज होती रही तामाम शब
इनायते करम उसका जुल्फ बिखराना

उसमे ही उलझती रही तमाम शब्

दरमियां उसके लम्हों का फासला बस
खौफे रुसवाई सताती रही तमाम शब्

हया से उसका दामन छुडा के मुस्कुराना

आर्ज़ुयें यु ही मचलती रही तमाम शब्

मेरी इल्तजा पे उसका नजर झुका देना

उसके रुखसार पे महकती रही तमाम शब्