Friday, November 27, 2009

पिघलती रही जिन्दगी

आवारगी के साथ भटकती रही जिन्दगी
रात तन्हाई में सिसकती रही जिन्दगी
किसी पथरीली राह में मोहब्बत बनकर
नरम शोलों सी पिघलती रही जिन्दगी
बोझिल कदमो से बेइरादा मंजिलों पर
कभी चली तो कभी रुकी सी रही जिन्दगी
किसी ने आवाज दी जरा जो प्यार से
उस ओर दीवानावार चलती रही जिन्दगी
दोस्तों की रहनुमाई हर मौज के साथ साथ
बस ख्वावों से ही बहलती रही जिन्दगी
उधार की चंद कालिया चुनकर भी देखो
बीच आंसुओ के भी महकती रही जिन्दगी

तमाम शब


कतरा कतरा पिघलती रही तमाम शब्

वो आईने में संवरती रही तमाम शब्

निगाहें चमकती रही गहरे काजल में

चांदनी पहलु में मचलती रही तमाम शब्

सांसो को बयां करने थे कई अफ़साने

थम थम के तेज होती रही तामाम शब
इनायते करम उसका जुल्फ बिखराना

उसमे ही उलझती रही तमाम शब्

दरमियां उसके लम्हों का फासला बस
खौफे रुसवाई सताती रही तमाम शब्

हया से उसका दामन छुडा के मुस्कुराना

आर्ज़ुयें यु ही मचलती रही तमाम शब्

मेरी इल्तजा पे उसका नजर झुका देना

उसके रुखसार पे महकती रही तमाम शब्

Saturday, August 22, 2009

मुझे जब गुनगुनाता होगा


देर तक आईने से वो कतराता होगा

ग़ज़ल बनाके मुझे जब गुनगुनाता होगा

एक तमन्ना है उस पल रूबरू हूँ मैं

मेरा ख्याल लिए जब वो मुस्कुराता होगा

खोई आँखों चाँद निहारते हुए शायद

मेरे अक्स को ही पास बुलाता होगा

नाम हिना से लिख के हथेली पे अपनी

कैसे सहेलियों से भी वो छुपाता होगा

छुपा के तस्वीर तकिये में रखी होगी मेरी

बहाने से सीने पे मेरे सर वो टिकाता होगा

बहुत खुमारी की एक रात गुजरी थी कभी

उसी शब् की महक से लम्हा बिताता होगा

Wednesday, August 19, 2009

आईना दिखा रहा था


वो दीवारों की पुरानी तस्वीरें हटा रहा था

कभी जिसके मै रेत के घरोंदे बचा रहा था

जिसकी पदचाप ने दिए नए आयाम जिन्दगी को

वही मेरी जिन्दगी को बेमानी बता रहा था

जागती थी आंख उसकी करवातो के साथ

वो अब नजरो के हर परदे हटा रहा था

दुनिया सिमट गई थी जिस तस्वीर में मेरी

वो मेरा अक्स मुझे आइना दिखा रहा था

कोशिशे की मेरे सामने मुस्कुराने की बार बार

कतरा उसके कोरो का बस दर्द बता रहा था

जिस दामन में छुपके दुनिया से लड़ा वो

उसी आँचल को काँटों से महका रहा था

Friday, July 24, 2009

स्वप्न सजाते हुये


न गिला करना की जख्मी है कलम अपनी

ये कहकहों को समझने वाले है

क्या समझे ये दर्द तेरा ----------------------

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एक पक्षी को देखा था

कल नीड़ बनाते हुए ---तिनका तिनका एहतियात से सजाते हुए

हर पल आँखों में स्वपन सजाते हुए

फ़िर देखा उसी नीड़ को आँधियों में बिखर जाते हुए

मैं कल भी वहीं खड़ा था --------आज भी वही ठिकाना है

पर आज मेरी नजर ने देखा

उस पक्षी का एक नया ठिकाना है -------

कितना आसान था उसको रोज नए तिनके चुनना

हर तिनके पर अपना मुकद्दर लिखना ---------

हम क्यों बेबस है क्यों पर नही अपने -----

क्या हमारे सपने उन पक्षियों से कमतर है -

या होसलों में दम नही

हम भी काश पक्षी होते

रोज नए सफर पे नई किरन में खोते

रोज लिखते इबारत नए फ़साने की

फ़िर सोचता हूँ उसी नीड़ के नीचे खड़ा

क्या होगा जो कल फ़िर आंधी आयेगी

या बेरहम शिकारी का ये शिकार हो जायेगी

कितना कुछ है पर नही कुछ कही -------

सब बिरान है सबकी अपनी बगियाँ है -------


Sunday, July 12, 2009

सांवली हसीना

सांवली हसीना याद आती है कभी
दिल के तारो को छेड़ जाती है कभी
कभी खिलखिलाती तो कभी उदास बहुत
जानी सी अनजान नजर आती है कभी
रिमझिम फुहारों में मचलती जवानी लेकर
ख़ुद जलती हुई आग लगाती है कभी
उंगलियों में दुपट्टा फिराती हुई
दिल में उतरती जाती है कभी
तिश्ना नजरो से देखकर यु ही
खुली आँखों से स्वप्न दिखती है कभी
चलती राहों में यु ही नजरें टिकाये
मेरे हमराह चली आती है कभी
पास आकर खामोश विदा होती है
दूर जाकर आवाज लगाती है कभी
कांपते हांथो से छूकर मुझको
मुझको मुझसे ही चुराती है कभी
शाम सा सुरमई बदन लेकर
सारे माहौल को महकती है कभी

तेरी याद के साथ


कुछ मौसमी मस्ती का हल्का हल्का सुरूर लिए कुछ हलकी रचना आपकी नजर -----------------------

ंगडाईया टूटी है तेरी याद के साथ

कैसी बैचैनिया आई तेरी याद के साथ

बरस रहा था बादल मद्धम मद्धम

चिंगारिया थी जिस्म में तेरी याद के साथ

muddhat से तो नाता रखा न आंसुओ से

कुछ बुँदे थी पलकों पे तेरी याद के साथ

रोशनी का अरमां तो खो दिया मगर

पिघल रही थी कोई शमां तेरी याद के साथ

उड़ा रही थी हवा ही उलझी जुल्फों को

दहक रहा था शबाब तेरी याद के साथ

नींद तो तेरे पहलू में छोड़ आए थे

महक रहा था आफ़ताब तेरी याद के साथ

Sunday, June 28, 2009

सागर मिलन होती है


खामोशी की भी अलग अपनी जुबां होती है

दरिया की मंजिल सिर्फ़ सागर मिलन होती है

किसको आवाज देता है अब तक वो मुसाफिर

क्या फरिश्तो की आमद कभी सेहरा में होती है

हर मंजिल एक नई राह पे आकर गुम हों गई

इंशा की चाहे वो है जो न कभी ख़तम होती है

पर्वतों पे देखा है उस अस्मा को भी उतरते हुए

तनहा जब वो रोता है तब ही बारिश होती है

किसको फुर्सत थी पलकों की शबनम चुनने की

हर नजर में फूलो के शबाब की चर्चा होती है

कभी धड़कने सुलगती शोला सा भड़कता शब् भर

सिर्फ़ इश्क नही और भी मजबुरिया होती है

बहुत संभल कर चले जाने क्यो राहों में डरे ये

महक की गुलशन में चंद पल ही सांसे होती है .


Saturday, June 27, 2009

बदल ही जाये कभी


कौन जाने हालाते हाल बदल ही जाए कभी

वो पास आए और बापस ही न जाए कभी

बहुत छोटी सी थी तमन्ना जो अब भी है

खुशी का moti आंगन में बरस जाए कभी

ख़बर न थी गुड़ियों का खेल जिन्दगी है मेरी

पर इसकी तरह मुझे कोई बदल ही लाये कभी

तरस रहा हूँ सदियों से शबनमी अहसासों को

प्यासी आंखे ही अब तो बरस ही जाए कभी

उसकी आमद से चटकी है कई कलियाँ देखो

वो मेरा आंगन भी तो महका ही जाए कभी

Friday, June 26, 2009

गुलशन से चन्द कलियां क्या लाता


मै उसके वास्ते गुलशन से चंद कलियाँ क्या लाता

उस रोशनी के आगे कैसे कोई दूसरी शमां जलाता

मै सजदा किया करूँ वो मेरा बस हमनवां ही रहे

कैसे उसे अपने खयालो से भी दूर कर पाता

अजीज़ तो बहुत थे काफिलों की कमी न थी मगर

आज भी तेरे मुकाबिल कहाँ किसी को हूँ पाता

बहुत एतराज था नापैगामे अंदाज से अक्सर

कैसे उसके मुखातिब कोई हँसी पैगाम लिख पाता

ये रोज रोज के वही मंजर उकताते हुए सभी को

महक बहारो के झूठे स्वप्न कैसे उसे मै दिखाता

Wednesday, June 24, 2009


सोचा था हमने हर एक से राब्ता रखना

कहाँ मुमकिन है मगर सबसे वास्ता रखना

किसकी अंजुमन में जाओ लेकर अपनी परेशानिया

आता कहाँ है अभी चेहरे पे झूठी मुस्काने रखना

बेहतर था वो अपने मकाँ में कैद रहे शायद

सीखा नही उन्होंने सबसे कलामे मोहब्बत रखना

वो रूबरू हो या अब पर्दों से ही नजरे इनायत करें

हमको आ गया अब उन्हें अपने दिल में बसाये रखना

मौसम बदल जाय खिज़ा भी कुबूल अब तो यारा

हमने सीख लिया कागजी फूलो को महकाए रखना

Wednesday, June 3, 2009

मौन तो था नही मन आज से पहले इतना


मन मेरे क्यो बेकल हो इतने
ये हवाए बुँदे नही लायेंगी
जलती धरती की न प्यास बुझा पाएँगी
मधुबन फ़िर न खिला पाएँगी
आवारा है ये हवाए तुझे
सहला के लौट जाएँगी ---------मन मेरे

बरसो में बीता जिन्दगी का सफर

पल पल मिटता जुड़ता हुआ

मिलन की खुशी जुदाई के गम में

ख़ुद को भूलकर नए आशियाँ बनाता

बेरहम है ये हवाएं

तिनका तिनका बिखरा जाएँगी ---------मन मेरे

कितनी ही आँखों के नूर तुम

अपनों के अजीज दिल के करीब तुम

सपनो में खोये गमो से दूर तुम

रंगीनियो में पल पल सोये तुम

बेबफा है ये हवाएं

तुम्हे अपनों से बिछडा जाएँगी ----------मन मेरे

नन्ही उंगलियों को बेदर्दों ने फौलाद बना दिया

आँखों के पानी को आग बना दिया

कोमल बदन को नासूर बना दिया

सीने में जज्बातों को दफ़न करा दिया

सूखी हुई ये हवाए

शोलों को भड़का जाएँगी -----मन मेरे क्यो.


Tuesday, June 2, 2009

जिन्दा रहना कब तलक


अश्क पीना जख्म सीना जिन्दा रहना कब तलक

मतलबी जहान में तुझ बिन और रहना कब तलक

ये खता हमसे हुई आए हम उसके शहर में

वो हमें यु ही रखेगा और बेबस कब तलक

फूल पर बाग़ का माली का भी देखो करम

बोझ अहसानों का उठाना उसे कब तलक

अपने ही देते है हमको जख्म हर दिन नए

रहकर भी साया फिरूंगा मई आवारा कब तलक

देता है मुझको चाँद वो नयन लेने के बाद

मुझको है उस बुत के आगे और झुकना कब तलक

तल्खिया ही तल्खिया है रिस्तो के हर जाम में

पीते है यहाँ सब जहर और पियेंगे कब तलक

यु तो हरेक साँस का है जिन्दगी तुझसे गिला

दिल में शोले लव पर यु मुस्कुराह्ते कब तलक

एक तरफ़ मेरी जिन्दगी एक तरफ़ बद्गुमानिया

कशमकश है रात सारी और तडपना कब तलक

था बहुत ही में परेशां जिन्दगी से आज तक

हूँ मगर में अब पशेमा और रहना कब तलक

तुने फहराया था आँचल तप रहा था धुप में

साये से तेरे जल गया में और जलना कब तलक

की बगावत महक ने संगदिल चमन से

चर्चा रहेगा बहारो में न जाने कब तलक .



Saturday, May 30, 2009


कभी छुआ नही बस महसूस किया

क्या खबर कितना इंतजार किया

दामन में ये नही कि कुछ न था

जो मेरा हो बस उसका इंतजार किया

अश्को से तो तपन बुझा ली मन की

जलते जीवन में नमी का इंतजार किया

रास्ते थे मंजिले हमसफ़र भी मगर

बेसहारे से सहारों का इंतजार किया

बस्तियां उजड़ी फ़िर बसी मौसम की तरहां

एक हम के तिनको का इंतजार किया

Friday, May 29, 2009


रेशम रेशम से अहसास कहाँ से ले आये

मीठे मीठे ज़ज्बात कहाँ से ले आये

वो हरकदम पे मुड कर देखता क्यों है

हंसी मंजर हर राह पर कहाँ से ले आये

उसके वास्ते फिरता तो बहुत हो लेकिन

मौजे दरिया सी रवानी कहाँ से ले आये

कितना चाहा गर्दिशो से बचना हमने पर

मुस्कुराता हुआ चेहरा कहाँ से ले आये

यु तो सज जाती है हर रोज ही महफ़िल

जो वावस्ता हो मुझसे उसे कहाँ से ले आये .



लौट आओ के बहुत देर हो गई

लबो को मुस्कुराये हुये

हवाओं को महकाये हुये

नजरो के जुगनुओं को चमकाये हुये

बदन को बारिशो में भिगाए हुये

चाँद को हथेली में समाये हुये

किरणों को चेहरे पे सजाये हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

तेरे दामन में अश्को को बहाए हुये

बाँहों का तेरी सहारा पाए हुये

कदमो को राहो में मिलाये हुये

एक ही मंजिल को भुलाये हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

नजरो से नजरो को मिलाये हुये

बंद लवो से गजले सुनाये हुये

तेरे कंधे पे सर को टिकाये हुये

तेरे सपनो से अपनी नींद उडाये हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

जिन्दगी हर पल कुछ कम हो गई

तेरी मोहब्बत दिल में दबी रही

पर इसकी तपिश कुछ कम हो गई

लौट आओ के बहुत देर हो गई

जाम से जाम को टकराए हुये

लहरों पे गीतों को गुनगुनाये हुये

झूठे सच्चे वादों को निभाए हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

पैरो में मेहँदी लगाये हुये

माथे पे बिंदिया सजाये हुये

दामन को हवाओ में उडाये हुये

जुल्फों में फूलो को गुथाये हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

नमी आँखों की अगन हो गई

धड़कने शोलो में दफ़न हो गई

हसरते अब तो कफ़न हो गई

Thursday, May 28, 2009


चलो आज चांदनी रातों की बातें करें

बिन तेरे बीती उन रातों की बातें करें

कभी साहिल किनारे थाम लूँगा तेरे हाँथ

मुमकिन से नही उन खयालो की बातें करें

मेरी नजरो में तेरा चेहरा जब तैरता हो

झील में खिलते एक कँवल की बातें करें

मेरे हर नज़ारे की शक्ल में जो बस गया

महकते तेरे अहसास के झोको की बातें करे

मोहब्बत आँखों से बयां हो जाती है ।

दिल सुलगता है हर चीज पिघल जाती है

जख्म दिल का काफी है कुछ बयां करने के लिए

ज़ज्बात मचलते है शायरी बन जाती है .