Sunday, June 28, 2009

सागर मिलन होती है


खामोशी की भी अलग अपनी जुबां होती है

दरिया की मंजिल सिर्फ़ सागर मिलन होती है

किसको आवाज देता है अब तक वो मुसाफिर

क्या फरिश्तो की आमद कभी सेहरा में होती है

हर मंजिल एक नई राह पे आकर गुम हों गई

इंशा की चाहे वो है जो न कभी ख़तम होती है

पर्वतों पे देखा है उस अस्मा को भी उतरते हुए

तनहा जब वो रोता है तब ही बारिश होती है

किसको फुर्सत थी पलकों की शबनम चुनने की

हर नजर में फूलो के शबाब की चर्चा होती है

कभी धड़कने सुलगती शोला सा भड़कता शब् भर

सिर्फ़ इश्क नही और भी मजबुरिया होती है

बहुत संभल कर चले जाने क्यो राहों में डरे ये

महक की गुलशन में चंद पल ही सांसे होती है .


5 comments:

  1. महक,
    आपको गुरु जी के ब्लॉग सुबीर संवाद सेवा पर पाया तो उत्सुकता वश चला आया आपके ब्लॉग पर
    आपको पढ़ कर अच्छा लगा
    ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
    वीनस केसरी

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  2. वाह वाह बहुत ही बेहतरीन प्रयास

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  3. खामोशी की भी अलग अपनी जुबां होती है
    ======
    silence is the best speaker
    listen the sound by heart
    आपकी रचना बहुत अच्छी है.

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