
खामोशी की भी अलग अपनी जुबां होती है
दरिया की मंजिल सिर्फ़ सागर मिलन होती है
किसको आवाज देता है अब तक वो मुसाफिर
क्या फरिश्तो की आमद कभी सेहरा में होती है
हर मंजिल एक नई राह पे आकर गुम हों गई
इंशा की चाहे वो है जो न कभी ख़तम होती है
पर्वतों पे देखा है उस अस्मा को भी उतरते हुए
तनहा जब वो रोता है तब ही बारिश होती है
किसको फुर्सत थी पलकों की शबनम चुनने की
हर नजर में फूलो के शबाब की चर्चा होती है
कभी धड़कने सुलगती शोला सा भड़कता शब् भर
सिर्फ़ इश्क नही और भी मजबुरिया होती है
बहुत संभल कर चले जाने क्यो राहों में डरे ये
महक की गुलशन में चंद पल ही सांसे होती है .
swagat hai !
ReplyDeleteमहक,
ReplyDeleteआपको गुरु जी के ब्लॉग सुबीर संवाद सेवा पर पाया तो उत्सुकता वश चला आया आपके ब्लॉग पर
आपको पढ़ कर अच्छा लगा
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
वीनस केसरी
आप को अपने ब्लॉग पर फालोवर के रूप में देख कर खुशी हुई. फिर आपका लेखन भी देखा. मेहनत करें, सुबीर जी आप को गजल विधा में पारंगत कर देंगे. सही जगह चुनी है आपने. मेरी तरफ से ब्लॉग जगत में कदम रखने पर शुभकामना.
ReplyDeleteवाह वाह बहुत ही बेहतरीन प्रयास
ReplyDeletebadhiya likha badhai ho
ReplyDeleteखामोशी की भी अलग अपनी जुबां होती है
ReplyDelete======
silence is the best speaker
listen the sound by heart
आपकी रचना बहुत अच्छी है.