Wednesday, June 3, 2009

मौन तो था नही मन आज से पहले इतना


मन मेरे क्यो बेकल हो इतने
ये हवाए बुँदे नही लायेंगी
जलती धरती की न प्यास बुझा पाएँगी
मधुबन फ़िर न खिला पाएँगी
आवारा है ये हवाए तुझे
सहला के लौट जाएँगी ---------मन मेरे

बरसो में बीता जिन्दगी का सफर

पल पल मिटता जुड़ता हुआ

मिलन की खुशी जुदाई के गम में

ख़ुद को भूलकर नए आशियाँ बनाता

बेरहम है ये हवाएं

तिनका तिनका बिखरा जाएँगी ---------मन मेरे

कितनी ही आँखों के नूर तुम

अपनों के अजीज दिल के करीब तुम

सपनो में खोये गमो से दूर तुम

रंगीनियो में पल पल सोये तुम

बेबफा है ये हवाएं

तुम्हे अपनों से बिछडा जाएँगी ----------मन मेरे

नन्ही उंगलियों को बेदर्दों ने फौलाद बना दिया

आँखों के पानी को आग बना दिया

कोमल बदन को नासूर बना दिया

सीने में जज्बातों को दफ़न करा दिया

सूखी हुई ये हवाए

शोलों को भड़का जाएँगी -----मन मेरे क्यो.


6 comments:

  1. आपकी इस रचना के बारे में क्या कहूं.......
    बहुत ही उक्रष्ट रचना है.....
    बहुत ही अच्छे भावः प्रकट किये हैं आपने.......
    दर्द को इस तरहां से मैंने पहली बार पढ़ा है

    अक्षय-मन

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  2. महक जी अच्छा लिखती हैं आप. कथ्य का भंडार है आपके पास इसे और निखारिये. मुझे लगता है कि आप ग़ज़लें बहुत अच्छी कह सकती हैं. www.subeerin.blogspot.com पर जाकर और जुड कर देखिये. मुझे विश्वास है कि आपकी कहन बहुत धारदार हो जायेगी. बधाई और शुभकामनाएं. आशा है आगे भी मुलाकात होती रहेगी...

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  3. एक बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति .......

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  4. bahut hi khoobsurat rachna hai...mere shabd kab padenge tareef ki liye

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  5. सब शेर आपके नाम की तरह ही महक फैला रहे हैं
    सुगन्धित सुवासित, यही खुशबू हर बार बिखरेगी ऐसी उम्मीद जगह बैठा हूँ, बहुत बधाई अच्छे लेखन की.

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