Sunday, October 10, 2021

सोचा था हमने हर एक से राफ्ता रखना कहाँ मुमकिन है मगर सबसे वास्ता रखना किसकी अंजुमन में जाओ लेकर अपनी परेशानिया आता कहाँ है अभी चेहरे पे झूटी मुस्काने रखना बेहतर था वो अपने मकाँ में कैद रहे शायद सीखा नही उन्होंने सबसे कलामे मोहब्बत रखना वो रूबरू हो या अब पर्दों से ही नजरे इनायत करे हमको आ गया अब उन्हें अपने दिल में बसाये रखना मौसम बदल जाए खिजा भी कुबूल है अब तो यारा हमने सीख लिया कागजी फूलो को महकाए रखना

औरत थी

 मैं औरत थी मैं औरत हु मैं औरत ही रहूंगी 

जब तलक मन से न मैं स्वतंत्र हूँगी

तितली का तन लिए अर्स पर जाने का स्वप्न

भवरे की गुंजन से ठिठकते हो जब कदम 

कैसे क्षितिज तक मैं तन्हा उड़ सकूँगी 

मैं औरत ,,,,

दादे नज़ाकत पर बिखेरू पंखुड़िया

रेशमी जुल्फों की खुद बनाती बेड़िया

चिलमन से निकल लिबास में कैद रहूंगी

मैं औरत,,,

Saturday, September 19, 2020

बीते लम्हे

 कुछ दर्द ऐसे भी जो लफ्ज़ भी नही पाते , 

और कर्ज  जो ताउम्र चुका भी नही पाते, 

खाक कितनी भी वक्त की डाल दो  इनपर 

,बीते लम्हे कभी दफन नही हो पाते,

किसी दरख़्त की छांव ही नसीब है इनका, 

आवारा मुसाफिर तो मकां भी नही पाते  , 

रिसते रिसते खुद ब खुद सूख जाते है, 

दिलो के नासूर कभी मरहम भी नही पाते,

हवाओ का इंतजार बिखरने के लिए, 

मुरझाये फूल जब महक भी नही पाते

Friday, November 27, 2009

पिघलती रही जिन्दगी

आवारगी के साथ भटकती रही जिन्दगी
रात तन्हाई में सिसकती रही जिन्दगी
किसी पथरीली राह में मोहब्बत बनकर
नरम शोलों सी पिघलती रही जिन्दगी
बोझिल कदमो से बेइरादा मंजिलों पर
कभी चली तो कभी रुकी सी रही जिन्दगी
किसी ने आवाज दी जरा जो प्यार से
उस ओर दीवानावार चलती रही जिन्दगी
दोस्तों की रहनुमाई हर मौज के साथ साथ
बस ख्वावों से ही बहलती रही जिन्दगी
उधार की चंद कालिया चुनकर भी देखो
बीच आंसुओ के भी महकती रही जिन्दगी

तमाम शब


कतरा कतरा पिघलती रही तमाम शब्

वो आईने में संवरती रही तमाम शब्

निगाहें चमकती रही गहरे काजल में

चांदनी पहलु में मचलती रही तमाम शब्

सांसो को बयां करने थे कई अफ़साने

थम थम के तेज होती रही तामाम शब
इनायते करम उसका जुल्फ बिखराना

उसमे ही उलझती रही तमाम शब्

दरमियां उसके लम्हों का फासला बस
खौफे रुसवाई सताती रही तमाम शब्

हया से उसका दामन छुडा के मुस्कुराना

आर्ज़ुयें यु ही मचलती रही तमाम शब्

मेरी इल्तजा पे उसका नजर झुका देना

उसके रुखसार पे महकती रही तमाम शब्

Saturday, August 22, 2009

मुझे जब गुनगुनाता होगा


देर तक आईने से वो कतराता होगा

ग़ज़ल बनाके मुझे जब गुनगुनाता होगा

एक तमन्ना है उस पल रूबरू हूँ मैं

मेरा ख्याल लिए जब वो मुस्कुराता होगा

खोई आँखों चाँद निहारते हुए शायद

मेरे अक्स को ही पास बुलाता होगा

नाम हिना से लिख के हथेली पे अपनी

कैसे सहेलियों से भी वो छुपाता होगा

छुपा के तस्वीर तकिये में रखी होगी मेरी

बहाने से सीने पे मेरे सर वो टिकाता होगा

बहुत खुमारी की एक रात गुजरी थी कभी

उसी शब् की महक से लम्हा बिताता होगा

Wednesday, August 19, 2009

आईना दिखा रहा था


वो दीवारों की पुरानी तस्वीरें हटा रहा था

कभी जिसके मै रेत के घरोंदे बचा रहा था

जिसकी पदचाप ने दिए नए आयाम जिन्दगी को

वही मेरी जिन्दगी को बेमानी बता रहा था

जागती थी आंख उसकी करवातो के साथ

वो अब नजरो के हर परदे हटा रहा था

दुनिया सिमट गई थी जिस तस्वीर में मेरी

वो मेरा अक्स मुझे आइना दिखा रहा था

कोशिशे की मेरे सामने मुस्कुराने की बार बार

कतरा उसके कोरो का बस दर्द बता रहा था

जिस दामन में छुपके दुनिया से लड़ा वो

उसी आँचल को काँटों से महका रहा था