मैं औरत थी मैं औरत हु मैं औरत ही रहूंगी
जब तलक मन से न मैं स्वतंत्र हूँगी
तितली का तन लिए अर्स पर जाने का स्वप्न
भवरे की गुंजन से ठिठकते हो जब कदम
कैसे क्षितिज तक मैं तन्हा उड़ सकूँगी
मैं औरत ,,,,
दादे नज़ाकत पर बिखेरू पंखुड़िया
रेशमी जुल्फों की खुद बनाती बेड़िया
चिलमन से निकल लिबास में कैद रहूंगी
मैं औरत,,,
No comments:
Post a Comment