Sunday, October 10, 2021

सोचा था हमने हर एक से राफ्ता रखना कहाँ मुमकिन है मगर सबसे वास्ता रखना किसकी अंजुमन में जाओ लेकर अपनी परेशानिया आता कहाँ है अभी चेहरे पे झूटी मुस्काने रखना बेहतर था वो अपने मकाँ में कैद रहे शायद सीखा नही उन्होंने सबसे कलामे मोहब्बत रखना वो रूबरू हो या अब पर्दों से ही नजरे इनायत करे हमको आ गया अब उन्हें अपने दिल में बसाये रखना मौसम बदल जाए खिजा भी कुबूल है अब तो यारा हमने सीख लिया कागजी फूलो को महकाए रखना

औरत थी

 मैं औरत थी मैं औरत हु मैं औरत ही रहूंगी 

जब तलक मन से न मैं स्वतंत्र हूँगी

तितली का तन लिए अर्स पर जाने का स्वप्न

भवरे की गुंजन से ठिठकते हो जब कदम 

कैसे क्षितिज तक मैं तन्हा उड़ सकूँगी 

मैं औरत ,,,,

दादे नज़ाकत पर बिखेरू पंखुड़िया

रेशमी जुल्फों की खुद बनाती बेड़िया

चिलमन से निकल लिबास में कैद रहूंगी

मैं औरत,,,