Saturday, August 22, 2009

मुझे जब गुनगुनाता होगा


देर तक आईने से वो कतराता होगा

ग़ज़ल बनाके मुझे जब गुनगुनाता होगा

एक तमन्ना है उस पल रूबरू हूँ मैं

मेरा ख्याल लिए जब वो मुस्कुराता होगा

खोई आँखों चाँद निहारते हुए शायद

मेरे अक्स को ही पास बुलाता होगा

नाम हिना से लिख के हथेली पे अपनी

कैसे सहेलियों से भी वो छुपाता होगा

छुपा के तस्वीर तकिये में रखी होगी मेरी

बहाने से सीने पे मेरे सर वो टिकाता होगा

बहुत खुमारी की एक रात गुजरी थी कभी

उसी शब् की महक से लम्हा बिताता होगा

5 comments:

  1. आपके विचार, ख़यालात बहुत अच्छे हैं, सराहनीय हैं. थोड़ी सी कमी है तो सिर्फ तकनीक की और वह तो आप किसी भी समर्थ रचनाकार से सम्पर्क करके हासिल कर सकती हैं. अगर भीड़ से अलग पहचान बनानी है तो अध्ययन, चिन्तन, मनन करना होगा. मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं.

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  2. जो मैं कहने आया था वह सर्वत भाई ने कह दिया,आपके ख्यालात में गहराई के साथ-साथ जुबान [ भाषा ] में कशिश व रवानगी पुरजोर तरीके से मौजूद है बस छंद -गज़ल बहर सीखलें रचनाएं नगीने बन उभरेंगी,नेट पर बहुत कम टिप्पणियां पाएंगी आप मेरी काफ़ी कंजूस हूं जब तक रचना दिल कू छूती नहीं मैं लिख नहीं पाता
    श्याम सखा श्याम

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  3. Pak Karamu reading and visiting your blog

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  4. बहूत खूबसूरत भाव हैं

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