
देर तक आईने से वो कतराता होगा
ग़ज़ल बनाके मुझे जब गुनगुनाता होगा
एक तमन्ना है उस पल रूबरू हूँ मैं
मेरा ख्याल लिए जब वो मुस्कुराता होगा
खोई आँखों चाँद निहारते हुए शायद
मेरे अक्स को ही पास बुलाता होगा
नाम हिना से लिख के हथेली पे अपनी
कैसे सहेलियों से भी वो छुपाता होगा
छुपा के तस्वीर तकिये में रखी होगी मेरी
बहाने से सीने पे मेरे सर वो टिकाता होगा
बहुत खुमारी की एक रात गुजरी थी कभी
उसी शब् की महक से लम्हा बिताता होगा
आपके विचार, ख़यालात बहुत अच्छे हैं, सराहनीय हैं. थोड़ी सी कमी है तो सिर्फ तकनीक की और वह तो आप किसी भी समर्थ रचनाकार से सम्पर्क करके हासिल कर सकती हैं. अगर भीड़ से अलग पहचान बनानी है तो अध्ययन, चिन्तन, मनन करना होगा. मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं.
ReplyDeleteजो मैं कहने आया था वह सर्वत भाई ने कह दिया,आपके ख्यालात में गहराई के साथ-साथ जुबान [ भाषा ] में कशिश व रवानगी पुरजोर तरीके से मौजूद है बस छंद -गज़ल बहर सीखलें रचनाएं नगीने बन उभरेंगी,नेट पर बहुत कम टिप्पणियां पाएंगी आप मेरी काफ़ी कंजूस हूं जब तक रचना दिल कू छूती नहीं मैं लिख नहीं पाता
ReplyDeleteश्याम सखा श्याम
Pak Karamu reading and visiting your blog
ReplyDeleteबहूत खूबसूरत भाव हैं
ReplyDeleteमुद्दतों बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ और वही पोस्ट देखकर वापस लौटने से बेहतर लगा कि कुछ कहा जाये. आप युवा हैं, इतना समय हमारी उम्र के लोगों को ठीक है.
ReplyDeleteraat toe hone ko hai ,,, magar subha kab hogi ?? Amavasya ki kali raat ki
ReplyDeletekhyaal waqayi khoobsurat hai aapke
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