Saturday, June 27, 2009

बदल ही जाये कभी


कौन जाने हालाते हाल बदल ही जाए कभी

वो पास आए और बापस ही न जाए कभी

बहुत छोटी सी थी तमन्ना जो अब भी है

खुशी का moti आंगन में बरस जाए कभी

ख़बर न थी गुड़ियों का खेल जिन्दगी है मेरी

पर इसकी तरह मुझे कोई बदल ही लाये कभी

तरस रहा हूँ सदियों से शबनमी अहसासों को

प्यासी आंखे ही अब तो बरस ही जाए कभी

उसकी आमद से चटकी है कई कलियाँ देखो

वो मेरा आंगन भी तो महका ही जाए कभी

5 comments:

  1. उसकी आमद से चटकी है कई कलियाँ देखो

    वो मेरा आंगन भी तो महका ही जाए कभी

    आप बस लिखती रहिये
    शब्दों में रवानी है जो हमें लुभाती रहती है.

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  2. बेहद खूबसूरत रचना
    बहुत ही सुन्दर भाव है..और उतनी ही गहराई भी


    आपको बधाई

    मेरी शुभकामनायें

    आज की आवाज

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  3. बहुत सुन्दर और आशावादी रचना

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