Sunday, July 12, 2009

सांवली हसीना

सांवली हसीना याद आती है कभी
दिल के तारो को छेड़ जाती है कभी
कभी खिलखिलाती तो कभी उदास बहुत
जानी सी अनजान नजर आती है कभी
रिमझिम फुहारों में मचलती जवानी लेकर
ख़ुद जलती हुई आग लगाती है कभी
उंगलियों में दुपट्टा फिराती हुई
दिल में उतरती जाती है कभी
तिश्ना नजरो से देखकर यु ही
खुली आँखों से स्वप्न दिखती है कभी
चलती राहों में यु ही नजरें टिकाये
मेरे हमराह चली आती है कभी
पास आकर खामोश विदा होती है
दूर जाकर आवाज लगाती है कभी
कांपते हांथो से छूकर मुझको
मुझको मुझसे ही चुराती है कभी
शाम सा सुरमई बदन लेकर
सारे माहौल को महकती है कभी

2 comments:

  1. महक श्री
    आपका ब्लॉग देखा कविताओं में रूमानी
    एहसास है
    खुली आँखों से स्वप्न दिखती है कभी
    चलती राहों में यु ही नजरें टिकाये
    मेरे हमराह चली आती है कभी
    पास आकर खामोश विदा होती है
    अच्छा लगा
    चिट्ठा जगत / ब्लागवाणी पर एग्रीगेशन प्राप्त कीजिए

    ReplyDelete