Friday, May 29, 2009


लौट आओ के बहुत देर हो गई

लबो को मुस्कुराये हुये

हवाओं को महकाये हुये

नजरो के जुगनुओं को चमकाये हुये

बदन को बारिशो में भिगाए हुये

चाँद को हथेली में समाये हुये

किरणों को चेहरे पे सजाये हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

तेरे दामन में अश्को को बहाए हुये

बाँहों का तेरी सहारा पाए हुये

कदमो को राहो में मिलाये हुये

एक ही मंजिल को भुलाये हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

नजरो से नजरो को मिलाये हुये

बंद लवो से गजले सुनाये हुये

तेरे कंधे पे सर को टिकाये हुये

तेरे सपनो से अपनी नींद उडाये हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

जिन्दगी हर पल कुछ कम हो गई

तेरी मोहब्बत दिल में दबी रही

पर इसकी तपिश कुछ कम हो गई

लौट आओ के बहुत देर हो गई

जाम से जाम को टकराए हुये

लहरों पे गीतों को गुनगुनाये हुये

झूठे सच्चे वादों को निभाए हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

पैरो में मेहँदी लगाये हुये

माथे पे बिंदिया सजाये हुये

दामन को हवाओ में उडाये हुये

जुल्फों में फूलो को गुथाये हुये

लौट आओ के बहुत देर हो गई

नमी आँखों की अगन हो गई

धड़कने शोलो में दफ़न हो गई

हसरते अब तो कफ़न हो गई

2 comments: