Saturday, August 22, 2009

मुझे जब गुनगुनाता होगा


देर तक आईने से वो कतराता होगा

ग़ज़ल बनाके मुझे जब गुनगुनाता होगा

एक तमन्ना है उस पल रूबरू हूँ मैं

मेरा ख्याल लिए जब वो मुस्कुराता होगा

खोई आँखों चाँद निहारते हुए शायद

मेरे अक्स को ही पास बुलाता होगा

नाम हिना से लिख के हथेली पे अपनी

कैसे सहेलियों से भी वो छुपाता होगा

छुपा के तस्वीर तकिये में रखी होगी मेरी

बहाने से सीने पे मेरे सर वो टिकाता होगा

बहुत खुमारी की एक रात गुजरी थी कभी

उसी शब् की महक से लम्हा बिताता होगा

Wednesday, August 19, 2009

आईना दिखा रहा था


वो दीवारों की पुरानी तस्वीरें हटा रहा था

कभी जिसके मै रेत के घरोंदे बचा रहा था

जिसकी पदचाप ने दिए नए आयाम जिन्दगी को

वही मेरी जिन्दगी को बेमानी बता रहा था

जागती थी आंख उसकी करवातो के साथ

वो अब नजरो के हर परदे हटा रहा था

दुनिया सिमट गई थी जिस तस्वीर में मेरी

वो मेरा अक्स मुझे आइना दिखा रहा था

कोशिशे की मेरे सामने मुस्कुराने की बार बार

कतरा उसके कोरो का बस दर्द बता रहा था

जिस दामन में छुपके दुनिया से लड़ा वो

उसी आँचल को काँटों से महका रहा था