Wednesday, January 8, 2025

संताप प्रिय

 

मैं घनी अंधेरी रात और तुम पूनम का चांद प्रिय

नित नए हो रूप बदलते कैसे हो मुलाक़ात प्रिये

सज संवर पायल छनकाओ कजरा डारो अँखियन में 

अधरों पे मुस्कान धरो हृदय पे होने दो घात प्रिये

श्यामल सी है सांझ गुलाबी कलरव धुन है कोयल सी

बांधो न कुंतल केशो को होने दो बरसात प्रिये

मन भंवर सा भटक रहा है इत उत बन उपवन में

दे दो मेरे निश्छल प्रेम को अब तो बस विश्रांत प्रिये

जौं कस्तूरी मृग में बसे मै ढूंढ रहा तुझको खुद में

छू लो मेरी तपती देह तुम मिट जाए संताप प्रिय

Monday, January 6, 2025

 एक बार देख जाना मां, 

पथ पर आगे बढ़ते बच्चों को .

थोड़ा सुकून तू भी पा जाना, 

विदा हो चुका संताप सब, 

मन की पीड़ा भी धूल सी गई अब, 

तरस गई है आंखे अब तो एक बार फिर तुझे निहारने को

बचा लिया है कुछ समय भी  तेरे आँचल कि छाव को, 

याद तो आता है बहुत तेरी आँखों का वो सुनापन जो टिका  था दरवाजा हमारे इंतज़ार को, 

पर एक बार देख जाना कैसे जीते हैं हम तरसते हैं तेरी मनुहार को

एक नया अध्याय लिखे

 कह दो अब हर सीता से राम का न इंतजार करे 

रावण का संहार करे और एक नया अध्याय लिखे 

बालकाल में जिसे हाथों से उठाया करती थी

छू न पाए उसी पिनाक को जाने कितने बलशाली 

फिर चढ़ाओ वही प्रत्यंचा कि अबला का विधान मिटे

शिवजी ने खुद पार्वती को मां काली बनने दिया

खुद समाधि लीन रहे काली ने राक्षस संहार किया

जगाओ फिर वही शक्ति अंधकार कुछ तो छटे 

प्रेमपथ में डूबी राधा कृष्ण वियोग में क्यों रोए

मीरा सी क्यों दीवानी हो गली गली फिरती रहे

रौद्र रूप दिखलाओ कि रुदन करुणा का राग घटे 

कर आराधना आदिशक्ति की क्यों किसी की राह तके 

त्याग सौम्य को करो प्रज्वलित अग्नि इतनी  नयनों मे

कि छाया और महक से भी पापी थर थर कांप उठे

मैं खुद को इतना गिरा नहीं सकता

 मैं खुद को इतना गिरा नहीं सकता 

तू मेरे मुक़ाबिल आ नहीं सकता 

खुद को तू लाख मोहसिन समझें तो क्या

काट के पंख परिंदों को उड़ा नहीं सकता

 खुद ही मिट गया रुख हवाओं का देखकर

कलंदर की हस्ती कोई मिटा नहीं सकता 

लिपटे रहने दो चन्दन पे काले सर्पों को 

बबूल से कोई घर को महका नहीं सकता