मैं खुद को इतना गिरा नहीं सकता
तू मेरे मुक़ाबिल आ नहीं सकता
खुद को तू लाख मोहसिन समझें तो क्या
काट के पंख परिंदों को उड़ा नहीं सकता
खुद ही मिट गया रुख हवाओं का देखकर
कलंदर की हस्ती कोई मिटा नहीं सकता
लिपटे रहने दो चन्दन पे काले सर्पों को
बबूल से कोई घर को महका नहीं सकता
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