मैं घनी अंधेरी रात और तुम पूनम का चांद प्रिय
नित नए हो रूप बदलते कैसे हो मुलाक़ात प्रिये
सज संवर पायल छनकाओ कजरा डारो अँखियन में
अधरों पे मुस्कान धरो हृदय पे होने दो घात प्रिये
श्यामल सी है सांझ गुलाबी कलरव धुन है कोयल सी
बांधो न कुंतल केशो को होने दो बरसात प्रिये
मन भंवर सा भटक रहा है इत उत बन उपवन में
दे दो मेरे निश्छल प्रेम को अब तो बस विश्रांत प्रिये
जौं कस्तूरी मृग में बसे मै ढूंढ रहा तुझको खुद में
छू लो मेरी तपती देह तुम मिट जाए संताप प्रिय
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