Wednesday, January 8, 2025

संताप प्रिय

 

मैं घनी अंधेरी रात और तुम पूनम का चांद प्रिय

नित नए हो रूप बदलते कैसे हो मुलाक़ात प्रिये

सज संवर पायल छनकाओ कजरा डारो अँखियन में 

अधरों पे मुस्कान धरो हृदय पे होने दो घात प्रिये

श्यामल सी है सांझ गुलाबी कलरव धुन है कोयल सी

बांधो न कुंतल केशो को होने दो बरसात प्रिये

मन भंवर सा भटक रहा है इत उत बन उपवन में

दे दो मेरे निश्छल प्रेम को अब तो बस विश्रांत प्रिये

जौं कस्तूरी मृग में बसे मै ढूंढ रहा तुझको खुद में

छू लो मेरी तपती देह तुम मिट जाए संताप प्रिय

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