Sunday, June 28, 2009

सागर मिलन होती है


खामोशी की भी अलग अपनी जुबां होती है

दरिया की मंजिल सिर्फ़ सागर मिलन होती है

किसको आवाज देता है अब तक वो मुसाफिर

क्या फरिश्तो की आमद कभी सेहरा में होती है

हर मंजिल एक नई राह पे आकर गुम हों गई

इंशा की चाहे वो है जो न कभी ख़तम होती है

पर्वतों पे देखा है उस अस्मा को भी उतरते हुए

तनहा जब वो रोता है तब ही बारिश होती है

किसको फुर्सत थी पलकों की शबनम चुनने की

हर नजर में फूलो के शबाब की चर्चा होती है

कभी धड़कने सुलगती शोला सा भड़कता शब् भर

सिर्फ़ इश्क नही और भी मजबुरिया होती है

बहुत संभल कर चले जाने क्यो राहों में डरे ये

महक की गुलशन में चंद पल ही सांसे होती है .


Saturday, June 27, 2009

बदल ही जाये कभी


कौन जाने हालाते हाल बदल ही जाए कभी

वो पास आए और बापस ही न जाए कभी

बहुत छोटी सी थी तमन्ना जो अब भी है

खुशी का moti आंगन में बरस जाए कभी

ख़बर न थी गुड़ियों का खेल जिन्दगी है मेरी

पर इसकी तरह मुझे कोई बदल ही लाये कभी

तरस रहा हूँ सदियों से शबनमी अहसासों को

प्यासी आंखे ही अब तो बरस ही जाए कभी

उसकी आमद से चटकी है कई कलियाँ देखो

वो मेरा आंगन भी तो महका ही जाए कभी

Friday, June 26, 2009

गुलशन से चन्द कलियां क्या लाता


मै उसके वास्ते गुलशन से चंद कलियाँ क्या लाता

उस रोशनी के आगे कैसे कोई दूसरी शमां जलाता

मै सजदा किया करूँ वो मेरा बस हमनवां ही रहे

कैसे उसे अपने खयालो से भी दूर कर पाता

अजीज़ तो बहुत थे काफिलों की कमी न थी मगर

आज भी तेरे मुकाबिल कहाँ किसी को हूँ पाता

बहुत एतराज था नापैगामे अंदाज से अक्सर

कैसे उसके मुखातिब कोई हँसी पैगाम लिख पाता

ये रोज रोज के वही मंजर उकताते हुए सभी को

महक बहारो के झूठे स्वप्न कैसे उसे मै दिखाता

Wednesday, June 24, 2009


सोचा था हमने हर एक से राब्ता रखना

कहाँ मुमकिन है मगर सबसे वास्ता रखना

किसकी अंजुमन में जाओ लेकर अपनी परेशानिया

आता कहाँ है अभी चेहरे पे झूठी मुस्काने रखना

बेहतर था वो अपने मकाँ में कैद रहे शायद

सीखा नही उन्होंने सबसे कलामे मोहब्बत रखना

वो रूबरू हो या अब पर्दों से ही नजरे इनायत करें

हमको आ गया अब उन्हें अपने दिल में बसाये रखना

मौसम बदल जाय खिज़ा भी कुबूल अब तो यारा

हमने सीख लिया कागजी फूलो को महकाए रखना

Wednesday, June 3, 2009

मौन तो था नही मन आज से पहले इतना


मन मेरे क्यो बेकल हो इतने
ये हवाए बुँदे नही लायेंगी
जलती धरती की न प्यास बुझा पाएँगी
मधुबन फ़िर न खिला पाएँगी
आवारा है ये हवाए तुझे
सहला के लौट जाएँगी ---------मन मेरे

बरसो में बीता जिन्दगी का सफर

पल पल मिटता जुड़ता हुआ

मिलन की खुशी जुदाई के गम में

ख़ुद को भूलकर नए आशियाँ बनाता

बेरहम है ये हवाएं

तिनका तिनका बिखरा जाएँगी ---------मन मेरे

कितनी ही आँखों के नूर तुम

अपनों के अजीज दिल के करीब तुम

सपनो में खोये गमो से दूर तुम

रंगीनियो में पल पल सोये तुम

बेबफा है ये हवाएं

तुम्हे अपनों से बिछडा जाएँगी ----------मन मेरे

नन्ही उंगलियों को बेदर्दों ने फौलाद बना दिया

आँखों के पानी को आग बना दिया

कोमल बदन को नासूर बना दिया

सीने में जज्बातों को दफ़न करा दिया

सूखी हुई ये हवाए

शोलों को भड़का जाएँगी -----मन मेरे क्यो.


Tuesday, June 2, 2009

जिन्दा रहना कब तलक


अश्क पीना जख्म सीना जिन्दा रहना कब तलक

मतलबी जहान में तुझ बिन और रहना कब तलक

ये खता हमसे हुई आए हम उसके शहर में

वो हमें यु ही रखेगा और बेबस कब तलक

फूल पर बाग़ का माली का भी देखो करम

बोझ अहसानों का उठाना उसे कब तलक

अपने ही देते है हमको जख्म हर दिन नए

रहकर भी साया फिरूंगा मई आवारा कब तलक

देता है मुझको चाँद वो नयन लेने के बाद

मुझको है उस बुत के आगे और झुकना कब तलक

तल्खिया ही तल्खिया है रिस्तो के हर जाम में

पीते है यहाँ सब जहर और पियेंगे कब तलक

यु तो हरेक साँस का है जिन्दगी तुझसे गिला

दिल में शोले लव पर यु मुस्कुराह्ते कब तलक

एक तरफ़ मेरी जिन्दगी एक तरफ़ बद्गुमानिया

कशमकश है रात सारी और तडपना कब तलक

था बहुत ही में परेशां जिन्दगी से आज तक

हूँ मगर में अब पशेमा और रहना कब तलक

तुने फहराया था आँचल तप रहा था धुप में

साये से तेरे जल गया में और जलना कब तलक

की बगावत महक ने संगदिल चमन से

चर्चा रहेगा बहारो में न जाने कब तलक .